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काला धन या काला मन ?

Anuradha Dhyani
Anuradha Dhyani
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काला धन आजकल चर्चा का विषय बना हुआ है और जाने -अनजाने हम सब भी प्रबुद्ध नागरिक होने के नाते अपनी प्रतिक्रिया देते रहते है। जिन लोगों के पास नहीं है वो इस बात से खुश है कि पहली बार पैसा न होना कितना फायदेमंद हुआ और नोट बंदी की खबर देखते- सुनते मेरी 3 वर्ष की बेटी भी बोल पड़ी – मम्मी, टीवी में कितने सारे नोट है और हमारे पास केवल टू -थ्री नोट हैं । मैंने अपने मन में सोचा-अच्छा है, जो इतने नोट नहीं है क्योंकि जो थोड़े बहुत भी है उन्हें जमा करने एक बार तो लाइन में खड़ा होना ही पड़ेगा और जब से इंटरनेट , ऑनलाइन पेमेंट और प्लास्टिक मनी हाथ में आया है तब से लाइन में खड़ा होना तो छूट ही गया हैं।

बहुत लोगों के लिए खड़ा होना भी समस्या है क्योंकि सब सेना के जवानों के समान कैसे हो सकते है जिन्हें हर कठिनाई का सामना करने आता हैं और जिनके लिए देश सर्वोच्च है. समस्या खड़े होने की भी नहीं है पर इस बात की जरूर है कि सच में काला धन कैसे ख़तम होगा ? क़ानून के भय से कुछ अच्छे परिवर्तन की संभावना हो सकती है पर मुझे लगता है – जब तक मन काला रहेगा तब तक बहुत अच्छे परिवर्तन की उम्मीद व्यर्थ है ।

सच तो ये है जिसको जब मौका मिला उसने मुफ्तखोरी ,रिश्वतखोरी से परहेज नहीं किया। धन का लोभ , ज्यादा संचय एवं भोगने की इच्छा ने ही अनेक अपराध करवाये हैं चाहे वो कन्या भ्रूण हत्या हो या दहेज़ कुप्रथा या फिर अपने से निम्न स्तर पर व्यक्ति का शोषण……… इसलिए सब अपने अंतर्मन में देखें – हमारे पास काला धन तो नहीं पर कहीँ हमारा मन तो काला नहीं । कई बार अपनी माँ की बात से असहमत होते हुए भी सहमत होना पड़ता है कि तुम्हारी मेहनत की कमाई पर समाज का थोड़ा तो हक़ है. आजकल सभी का यही हाल है कि अपनी कमाई हमें अपने लिए ही कम पड़ती हैं क्योंकि अब हम भी कई बार दूसरों के प्रभाव में फिजूलखर्ची तो करते ही हैं और प्रश्न ये भी है कि क्या अपनी कमाई से अपने लिए खर्च करना कोई गलत बात है?

मेरी माँ क्या , और भी कई लोग मानते और कहते है -औरों को भी आर्थिक सहायता कर, मिल-बाँट कर खाओ , दान दो…हम उनका कहना मानते भी है पर कई बार बेमन से…… और मेरा खुद का अनुभव है कि जब भी मैंने सरल जीवन अपनाया और ऐसी बातें कही तो मजाक ही बना हैं । कई बार लगा कि शायद मेरी जैसी सोच वाले लोग हो भी तो बहुत कम है ।

इसलिए ऐसे कई महान उदाहरणों की आज आवश्यकता हैं कि नोटबंदी होती या न होती , चाय पिलाकर भी शादी हो सकती है बस जरुरी हैं सभी के सोच में बदलाव की -दिखावें में न जी कर ऐसे कर्म करे कि भारत भूमि भ्रष्टों की नहीं वरन महापुरुषों की माता कहलाये ।

अनुराधा नौटियाल ध्यानी

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