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हिंदी माह भी बीतने वाला है , अब अगले वर्ष फिर हिंदी की बातें होंगी और ये सिलसिला जारी रहेगा. हिंदी और अन्य प्रांतीय भाषाओँ की प्रगति हो रही हे या अवनति, ये अलग -अलग मंचो का प्रश्न है पर भाषा क्या कभी किसी की प्रगति में बाधा बनती है ? आज भी अंग्रेजी माध्यम में अध्ययन करने वाले विद्यार्थी ही सफल नहीं है वरन दूर -दराज के विद्यार्थी , जिन्हें मूलभूत सुविधाएं भी मुश्किल से उपलब्ध है ,भी अपना मुकाम हासिल कर रहे है. मेरा खुद का अनुभव है कि हिंदी माध्यम में पढ़ने के कारण उच्च स्तरीय शिक्षा में थोड़ा परेशानियां अवश्य आती है क्योंकि माध्यम बदल जाता है. विज्ञान विषय में तो पुस्तकें भी उपलब्ध नहीं और शोध कार्य भी अंग्रेजी भाषा में करना पड़ता है. आज भी याद आता है, जब पहली बार मैंने एम टेक का साक्षात्कार दिया था तब मन ही मन मेरा ज्यादा ध्यान इस बात पर केंद्रित था कि साक्षात्कार में अंग्रेजी में कैसा बोलना है ? सही लेकिन रुक -रुक कर अंग्रेजी भाषा में बात तो मैंने शुरू की पर स्वयं प्रोफेसर्स ने हिंदी में बात करके मेरे काम को आसान बना दिया. इसी तरह के अनुभव अनेक बार हुए , हिंदी भाषा की वजह से मेरी सफलता कभी रुकी नहीं पर मन में कही न कही फर्राटेदार अंग्रेजी बोलने का एक सपना हमेशा रहा. आज भी अंग्रेजी में बात तो कर लेते है पर उन्हीं अन्य लोगों की तरह जिनकी पढ़ाई अच्छे वाले यानी कान्वेंट स्कूल में नहीं हुई .
अंग्रेजी का ज्ञान अच्छा और मददगार है पर ये मन का भ्रम ही है कि यही भाषा उज्जवल भविष्य की गारंटी है. देश के अनेक प्रतिष्ठित संस्थानों के बड़े पदों पर आसीन लोगों से बात करके कभी नहीं लगा कि हिंदी या प्रांतीय भाषा में बात करने वाले को ज्यादा परेशानी हो सकती है यदि उनमे योग्यता है. जब कई लोगों के अनुभव मैंने सुने तब अधिकतर लोगों का मानना है कि भाषा पर अच्छी पकड़ आपका रास्ता आसान जरूर करती है बशर्तें आपको अपने विषय का ज्ञान अच्छे से हो. आपके सामने वाला आपके ज्ञान , परिश्रम और योग्यता को ज्यादा महत्व देता है. काम करने योग्य जरुरी भाषा का ज्ञान धीरे- धीरे सभी को हो ही जाता है और परिश्रम किया जाए तो कोई भी भाषा सीखना हमारे वातावरण को ही आसान बनता है. जरुरत के हिसाब से सब अन्य भाषा सीख ही लेते है जिसका सबसे सरल उदाहरण हमारे आस-पास के सामान बेचने वाले और व्यापार जगत से जुड़े लोग होते है जो भाषा को आसानी से पकड़ लेते है .
फिर भी हम सभी को कभी न कभी इस दौर से गुजरना पड़ा होगा या पड़ता है जब हमारा आत्म विश्वास अंग्रेजी भाषा के न आने से थोड़ा कमजोर पड़ जाता है पर अंत में हम जान जाते है कि हमारी योग्यता और सकारात्मक विचार ही हमें सफल बनाते है.
अनुराधा नौटियाल ध्यानी
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