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काश मै गाय होती ! (लघु कथा)

Anuradha Dhyani
Anuradha Dhyani
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माँ, आज दादी बड़ी खुश हैं, क्या बात हो गयी ? . मेरी प्यारी ममता ,आज हमारी गाय को बछड़ी हुई है. जैसे तुम मेरी बेटी हो वैसे ही आज सुबह गाय की भी बेटी हुई है. ओहो माँ ! गाय को बेटी हुई तब तो गाय को लोगों की बातें सुननी पड़ेगी. बछड़ी की दादी और पापा दोनों उसे प्यार नहीं करेंगे. अब माँ को पुरानी बातें याद आ गयी थी और आंसू बस किसी तरह से रुके हुए थे. घर के काम काज में कुशल होते हुए भी उसे बेटी की माँ होने का ताना सुनना ही पड़ता था पर उसे इस बात का दुःख नहीं था क्योंकि ये दंश तो हर एक को सहना पड़ता है चाहे नारी सशक्तिकरण की कितनी बाते क्यों न होती रहे. तभी अपने को सँभालते हुए बोली -बेटी ! ऐसी बात नहीं है , जब तुम खूब अच्छा काम करोगी और तुम्हारा नाम होगा तब पापा और दादी भी खुश होंगे. तभी ममता बोली- माँ , गाय की बेटी ने ऐसा क्या काम किया है? इस बात का जवाब तो माँ के पास था पर क्या कहे और कैसे बताये कि बछड़ी बड़े होकर घर का आर्थिक आधार बनेगी जबकि बेटियां तो बोझ ही मानी जाती रही है . इतना ही कह पायी कि बेटी ! छोटे बच्चों को देख के सब खुश ही होते है और अब तुम खाना खा लो. एक पल को मन में भाव आया -काश ! मैं भी गाय होती पर स्वार्थ की इस दुनिया में लोगों के लिए संतान की मह्त्ता भविष्य के फायदे को देखते हुए है अन्यथा इंसानो की बेटियों का संसार में आने का स्वागत भी धूमधाम से किया जाता . बेटी के मन को तो बहला दिया पर यदि ये सवाल फिर सामने आया तो इसका जवाब देना तो पड़ेगा ही.

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