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बरामदे में बैठी दीपा फूलों को देख रही थी पर प्रकृति का सामीप्य भी उसके मन के दर्द को कम नहीं कर रहा था .भगवान की कृपा से उसके पास सब ही तो था पर गोद सूनी थी.घर और आफिस की व्यस्तता में वो सब भूल जाती पर समाज कहाँ भूलने देता हैं. आज दोपहर में वो बहुत खुश थी, अस्पताल मैं अपनी सहेली रिया की बेटी को अपने हाथ में लेकर उसे असीम आनंद का अनुभव हो रहा था.
रिया उसी के साथ निजी कंपनी में कार्यरत थी.उसका चेहरा उदास था और पूछने पर वो बोल ही पड़ी “आज भी विवाह के बाद वो स्त्री ही अच्छी है ,जो कमा के भी लाये और पुत्र को भी जन्म दें. दूसरी बेटी होने का दुःख नहीं पर पिछले दो वर्षों से मानसिक दबाव होने से मैंने दूसरी बार माँ बनना स्वीकार किया फिर भी बेटी ही हुई. दीपा ,हम भी तो बेटी रही हैं, अपने माता -पिता का गौरव रहे पर सबकी सोच वैसी नहीं.घर में कोई दुखी नहीं पर उल्लासित भी तो नहीं.
तभी रिया के ससुराल पक्ष के लोगो को देख कर दीपा बधाई के लिए उठी और उन्हें मिठाई देने के लिए डिब्बा आगे किया . लक्ष्मी आई हैं आपके घर पर परन्तु उनके चेहरे के फीकेपन को देखते हुए वो बाय कहते हुए कमरे से बाहर निकल गयी . बाहर निकलते ही उसके कान में रिया की सास के शब्द सुनाई दिए-बड़ी आई लक्ष्मी वाली, जब अपनी बेटी हो तब पता चले.घर में एक लक्ष्मी ही काफी हैं.दीपा के मन का सारा उल्लास जाता गया और भारी मन से घर लौट आई.अपने कमरे में भी जब भावनाओ के ज्वार से बाहर न निकल पायी तो बरामदे में चली गयी.
”चाय पियोगी या काफी ,अपने लिए बना रही हूँ”.अपनी सास के इन शब्दों को सुनकर अपने मन के भाव छिपाने की कोशिश करते हुए बोली-माँ, मैं बनाती हूँ चाय .तभी सास ने उसे चाय का कप दिया और कहने लगी ”क्यों छिपाने की कोशिश करती हो, मैं तुम्हारा दर्द जानती हूँ.चार वर्ष हो गए तुम्हारे और राकेश की शादी के पर तुम्हे संतान का सुख नहीं मिला.तुम्हारी व्यस्तता को देखते हुए मैंने कुछ कहा नहीं.इंतज़ार करना हैं तो कर सकते हो दोनों पर मेरी राय है तुम दोनों बच्चा गोद ले सकते हो.
इन शब्दों ने उसके मन को राहत तो दी पर उसकी सास के साथ उसके अच्छे अनुभव के कारण वो बोल ही पड़ी -माँ, जिसको भगवान् संतान देता हैं उसको कदर नहीं और जिसको कदर है ….बेटी ,समाज का काम ही है कहते रहना अब तुम दोनों को ही सोचना है.मै हमेशा तुम दोनों के साथ हूँ .चलो अब अन्दर ,रात का खाना भी पकाना है या बाहर खाने चले .यदि बाहर चलना है तो राकेश को फ़ोन कर दो.तुम्हारा मन भी बदल जाएगा.
घर के अन्दर जाते हुए दीपा भगवान् का आभार प्रकट कर रही थी कि संतान का सुख न मिला पर माँ जैसी सास का सुख उसे मिला.उसकी सास उसके जैसी शिक्षित तो नहीं थी पर समाज के दकियानूसी परम्पराओ को ना मानने वाली थी.उसकी शैक्षणिक योग्यता और पैसा भी उसके मानसिक दुःख को कम नहीं कर पा रहा था पर सास के शब्द अमूल्य बन गए थे आज और शायद वो कुछ निर्णय ले पाए अब.
रिया या वो ,दोनों की ही सास थी.रिश्ता सास -बहु का ही था पर चारित्रिक भिन्नता ही है जो रिश्तों कि सुवास को समाप्त करता है या बनाये रखता है.आज उसी रिश्ते की सुवास की वजह से वो समाज के बार- बार दिए दंश से बाहर आ गयी थी.
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